“I’ve lost all my money on these films.
They are not commercial. But I’m glad to lose it this way. To have for a souvenir of my life pictures like Umberto D. and The Bicycle Thief.”
– Vittorio De Sica
पिछले कई दिनों से किसी फ़िल्म के बारे में नहीं लिखा। दिल नहीं चाह रहा था। मन को टिकाय नहीं था । बहुत सारी चीज़ें दिमाग में चल रही थीं। अब जा कर खुद को समझाया है और कोशिश कर रहा हूँ। फिर से। दूसरा कारण यह था के कुछ इक्का दुक्का दोस्त चाह रहे थे के मैं बाहर की फिल्मों से ज्यादा हिंदी फिल्मों के बारे लिखूं। अंदरूनी खोपचे (इनबॉक्स) में मैंने उन्हें सदा सदा के लिए मेरी fb प्रोफाइल से दूर हो जाने की सलाह दी। मगर विशवास के साथ कहता हूँ के वह पढ़ेंगे क्योंकि ज़ायके का व्यंजन के रंग से कोई लेना देना नहीं है। पढ़िये। शौंक से पढ़िये। मेरे लिए सिनेमा भाषा से कहीं ऊपर है और यह मेहेज़ कला से ज्यादा जीवन का सरआइना है।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इटली की चरमराती व्यस्थता पर विट्टोरिओ डी सिक्का का कथार्सिस है “shoeshine”। सिक्का वैसे तोह “बाइसिकल थीव्स” जैसी फ़िल्म के लिए विश्व सिनेमा के बेहतरीन फिल्मकारों में से एक गिने जाते हैं । “shoeshine” भी उतनी हो महानतम फ़िल्म है जिसने italian neo-realism की नींव रखी। 1948 में इस फ़िल्म को अकादमी अवार्ड से नवाज़ गया। उसके बाद से ही यह अवार्ड बेस्ट फॉरेन फ़िल्म केटेगरी के लिए हर साल दिया जाने लगा।
शूशाइन बूट पोलिश करने वाले दो बच्चों की कहानी है जो पैसे के लेन देन में जेल में डाल दिए जाते हैं। विश्व युद्ध के बाद फासिज्म के गिरते ही कैसे इटली के बच्चों में भुखमरी, चोरी-चाकरी, लूट खोह फैली, “shoeshine” इसी दुखांत का एक वर्णन है।
दुःख की बात है जिस शिद्दत से neo realism के लिए रसोलिनी और फेललिनी को याद किया जाता है उतने फख्र से सिक्का को याद नहीं किया जाता। जबके इस सिनेमा मूवमेंट को अंतराष्ट्रीय स्तर तक लेके जाने का बहुत सारा श्रय सिक्का को जाता है। विश्व युद्ध के बाद जब इटली बुरी तरह से टूट चूका था, सिनेमा स्टूडियो गिरा दिए गए थे, तब neorealism ने ही सिनेमा को ज़िंदा रखा।
इस मूवमेंट को समझने के लिए सिक्का और रसोलिनी की फिल्में बहुत कारागर साबित हो सकती हैं। neorealism का दौर इटली सिनेमा का सुनहरी दौर था, जब औसतन आदमी के जीवन को परदे पर परस्तुत किया गया था। shoeshine दोस्ती, भोलेपन नादानी और शाशकों की बदज़ाति का प्रतीक है। इस फ़िल्म के बारे में ओर्सेन वेल्स कहते हैं जो के बिलकुल दरुस्त भी है –
” कैमरा गायब हो जाता है,पर्दा गायब हो जाता है। दिखती है तोह बस! ज़िन्दगी…
जानता हूँ आप 80 फीसदी लोगों में होंगे जिन्होंने “बाइसिकल थिव्स” देखि होगी पर शू शाइन नहीं। उसको सलाह है के शू शाइन भी देखें।
नीचे लिंक में फ़िल्म के बारे में नार्मन हॉलैंड का लिखा आर्टिकल है। पढ़ सकते हैं।
Norman Holland on shoeshine & sikka
– Gursimran Datla